‘अपराध से समाज में पैदा होता है भय, इसे बने रहने देना अन्याय’,: सुप्रीम कोर्ट

देश की सर्वोच्च अदालत ने पांच दोषियों की अपील खारिज करते हुए बड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध से समाज में पैदा होता है भय इसे बने रहने देना अन्याय है। कोर्ट ने आगे कहा कि- आपराधिक प्रशासनिक व्यवस्था का उद्देश्य लोगों की व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा करना है।
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अपराध से समाज में भय पैदा होता है और अगर ऐसी स्थिति को समाज में बने रहने दिया जाए तो यह अन्याय है। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ 2002 के एक हत्या मामले में पांच दोषियों की अपील खारिज कर दी।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और पीबी वराले की पीठ ने की सुनवाई
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने कहा, प्रत्येक सभ्य समाज में आपराधिक प्रशासनिक व्यवस्था का उद्देश्य समाज में विश्वास और एकजुटता पैदा करने के अलावा व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा करना और सामाजिक स्थिरता व व्यवस्था बहाल करना होता है। अदालतों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए एक तरफ अभियुक्तों के हितों और दूसरी तरफ राज्य/समाज के हितों के बीच संतुलन बनाने का काम सौंपा गया है।
जांच रिपोर्ट ठीक से नहीं बनाई गई- दोषियों के वकील ने दिया तर्क
इस मामले में दोषियों के वकील ने तर्क दिया कि जांच रिपोर्ट ठीक से नहीं बनाई गई थी। प्रत्यक्षदर्शियों ने राजनीतिक दुश्मनी के कारण आरोपियों को फंसाने के लिए रटे-रटाए बयान दिए। इस पर पीठ ने कहा कि हालांकि गवाहों के बयानों में असंगति थी, लेकिन इससे उनकी गवाही अविश्वसनीय नहीं हो जाती। पीठ ने कहा, सिर्फ इसलिए कि सुजीश का शव दूसरे पीड़ित सुनील के शव से थोड़ी दूरी पर पाया गया, यह अभियोजन पक्ष के पूरे मामले को खारिज करने का एकमात्र और निर्णायक कारक नहीं हो सकता।
क्या है पूरा मामला?
1 मार्च 2002 को संघ/विहिप ने बंद का आह्वान किया था। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान सीपीआई (एम) और आरएसएस के सदस्यों के बीच झड़पें हुईं। इस दौरान आरएसएस/विहिप से जुड़े 11 लोगों के एक समूह ने सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली भीड़ के डर से खुद को छिपा लिया, लेकिन उनमें से दो पर हमला किया गया और उन्हें मार दिया गया।