COVID-19 महामारी के दौरान 19 लाख भारतीय बच्चों ने गंवा दिए पैरेंट्स- स्टडी में खुलासा

यह स्टडी मैथेमैटिकल एक्सरसाइज (एक गणितीय अभ्यास) पर आधारित है, जिसमें यह भी बताया गया कि मार्च 2020 और अक्टूबर 2021 के बीच दुनिया भर में 52 लाख बच्चों ने अपने माता-पिता या देखभाल करने वाले को खो दिया।
नई दिल्ली
भारत में कोरोना वायरस महामारी के दौरान लगभग 19 लाख बच्चों ने अपने अभिभावकों या फिर देखभाल करने वाले व्यक्ति को खो दिया। इस बात का खुलासा गुरुवार (24 फरवरी, 2022) को एक इंटरनेशनल स्टडी के जरिए हुआ। साथ ही इस अध्ययन से पता चलता है कि केंद्र और राज्यों की ओर से रिपोर्ट किए गए डेटा की तुलना में यह आंकड़ा 12 गुना अधिक है।
स्टडी में दिए डेटा के मुताबिक, भारत में कुल 1,917,100 बच्चों ने इस प्रकार का नुकसान झेला, जबकि ब्राजील में यह संख्या 169,900, अमेरिका में 149,300, दक्षिण अफ्रीका में 134,500 और इंग्लैंड व वेल्स में 10,400 रही।
स्टडी बताती है किकोरोना के दौरान अधिकांश 20 देशों में 10 से 17 साल की आयु के किशोरों के बड़े अनुपात ने छोटे बच्चों के सापेक्ष ऐसी मौतों का अनुभव किया है, जबकि एक पिता की मृत्यु एक मां की तुलना में अधिक आम थी।
स्टडी टीम के सदस्य और लंदन की यूनिवर्सिटी कॉलेज में मनोवैज्ञानिक लोरेन शेर ने बताया, “एचआईवी-एड्स से अनाथ होने में पांच मिलियन बच्चों को 10 साल लग गए, जबकि कोविड-19 ने इतने ही बच्चों को अनाथ कर दिया है।”
यह स्टडी मैथेमैटिकल एक्सरसाइज (एक गणितीय अभ्यास) पर आधारित है। इसमें आगे यह भी बताया गया कि मार्च 2020 और अक्टूबर 2021 के बीच दुनिया भर में 52 लाख बच्चों ने अपने माता-पिता या देखभाल करने वाले को खो दिया।
इस विश्लेषण में अनुमान लगाया गया है कि 20 महीने में भारत में लगभग 421,000 बच्चे मैटर्नल ऑरफन (जिनकी मां का निधन) हो गए और 1.49 मिलियन बच्चे अनाथ (मा-पिता दोनों) हो गए। जिन बच्चों ने अपने मां-बाप को गंवाया, उनमें से 12 लाख से अधिक बच्चे 10-17 वर्ष की आयु के थे, जबकि बाकी 10 से कम उम्र के थे।
भारत के राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights : NCPCR) की ओर से बनाए गए एक ऑनलाइन पोर्टल ने बीते महीने तक 147,492 बच्चों की गिनती दर्ज की थी, जिन्होंने अप्रैल 2020 से कोविड-19 या अन्य कारणों से एक माता-पिता या दोनों माता-पिता को खो दिया था।
बाल अधिकार अधिवक्ताओं का मानना है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरफ से अपलोड किए गए आंकड़ों के आधार पर एनसीपीसीआर की संख्या संभवत: उन बच्चों की वास्तविक संख्या से कम है, जिन्होंने माता-पिता को खो दिया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि मरने वालों में से कई को कोविड-19 रोगियों के रूप में पहचाना या रजिस्टर नहीं किया जा सकता है।