मोदीजी की मन की बात जारी रहेगी जनता चाहे जिस हाल में रहे !

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बदस्तूर महीने के आखिरी रविवार को मन की बात की। उन्होंने एक बार फिर देश को बता दिया कि जनता चाहे जिस हाल में रहे, वे अपने मन की बात कहना और मनमानी करना नहीं छोड़ेंगे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बदस्तूर महीने के आखिरी रविवार को मन की बात की। उन्होंने एक बार फिर देश को बता दिया कि जनता चाहे जिस हाल में रहे, वे अपने मन की बात कहना और मनमानी करना नहीं छोड़ेंगे। वैसे तो इस वक्त देश जिन हालात से गुजर रहा है, उनमें कई सारे मुद्दों पर जनता देश का मुखिया होने के नाते मोदीजी से उनका पक्ष, उनकी राय जानना चाहती है। लेकिन वो तो जन की बात हो जाती, जबकि मोदीजी का कार्यक्रम मन की बात है, उसका जनसरोकारों से क्या वास्ता। हालांकि इस कार्यक्रम के प्रस्तोताओं की कोशिश यही रहती है कि इसे जनता के कार्यक्रम की तरह पेश किया जाए, लेकिन इस कोशिश की परतें कहीं न कहीं से उखड़ ही जाती हैं और सच सामने आ जाता है, जैसे गंगा किनारे दफ्न शवों के ऊपर से कफन हट गए, तो सरकारी व्यवस्था की सच्चाई सामने आ गई।
बहरहाल, 30 मई को मोदीजी के मन की बात के दौरान संयोग ये बना कि हाल ही में उनके प्रधानमंत्रित्व काल के 7 साल पूरे हुए। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में इस खास मौके का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा कि आज 30 मई को हम मन की बात कर रहे हैं और संयोग से ये सरकार के 7 साल पूरे होने का भी समय है। इन वर्षों में देश सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के मंत्र पर चला है। देश की सेवा में हम सभी ने हर क्षण समर्पित भाव से काम किया। इन 7 वर्षों में ही देश के अनेक पुराने विवाद भी पूरी शांति और सौहार्द्र से सुलझाए गए हैं। पूर्वोतर से लेकर कश्मीर तक शांति और विकास का एक नया भरोसा जगा है। इन 7 सालों में हमने सरकार और जनता से ज़्यादा एक देश के रूप में काम किया, टीम इंडिया के रूप में काम किया।
जिस किसी ने ये स्क्रिप्ट लिखी है, उसकी कल्पनाशक्ति की दाद देनी चाहिए। पिछले सात सालों की जो उपलब्धि मोदीजी बता रहे हैं, उसके बरक्स अगर आस-पास नजर दौड़ाई जाए, तो सात सालों की हासिल समझ आ जाएगा। देश में बेरोजगारी, गरीबों की संख्या और कुछ उद्योगपतियों की दौलत में एक साथ बढ़ोतरी हुई है, क्या इसे सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास कहा जा सकता है। सरकार का खजाना खाली हुआ है, निजीकरण को बढ़ावा देकर राजकोषीय घाटा पूरा करने में सरकार का ध्यान है और कहा जा रहा है कि हमने समर्पित भाव से काम किया। और जिन पुराने विवादों को शांति से सुलझाने का दावा किया गया, उनकी हकीकत भी सब जानते हैं, बस इस वक्त माहौल ऐसा बना दिया गया है कि सरकार के गलत फैसलों के खिलाफ खुलकर बोलने का चलन खत्म सा होता जा रहा है।
कश्मीर के लोगों से किए गए वादे को तोड़ते हुए कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस ले लिया गया, उसे दो हिस्सों में बांटा गया और केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए, वहां अब तक चुनाव नहीं हुए हैं, विपक्ष को वहां जाकर जमीनी हकीकत जानने से रोका गया, क्या इसे नया भरोसा जागना कहा जा सकता है। कोई भी टीम ऐसी तो नहीं होती, जहां कप्तान अपने मन से फैसले ले, उन्हें सब पर थोप दे। जबकि मोदीजी ने लगातार एकतरफा फैसले ही लिए हैं। नोटबंदी, अनुच्छेद 370, सीएए, कृषि बिल ऐसे अनेक मसले हैं, जिन पर विपक्ष तो दूर, अपने सहयोगियों से भी मोदीजी ने चर्चा करना जरूरी नहीं समझा।
मन की बात में मोदीजी ने कोरोना को सौ सालों में सबसे बड़ी महामारी बताते हुए कहा कि हाल के दिनों में हमने देखा है कि कैसे हमारे डॉक्टर, नर्स और फ्रंट लाइन वॉरियर्स ने ख़ुद की चिंता छोड़कर दिन-रात काम किया और आज भी कर रहे हैं। अच्छा है कि उन्हें डाक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की मेहनत नजर आई। लेकिन और अच्छा होता, अगर वे इसके साथ उन लोगों को भी दो-चार खरी-खरी सुना देते, जो इस वक्त लोगों को गुमराह कर रहे हैं। ऐलोपैथी और डाक्टर्स के खिलाफ तमाम अनर्गल बातें करने के बाद रामदेव खुलेआम चुनौती दे रहे हैं कि किसी का बाप उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकता। आज अगर मोदीजी अपने कार्यक्रम से इस चुनौती का जवाब दे देते, तो उनकी असल हिम्मत के दीदार जनता को हो जाते।