देश में ब्लैक फंगस के मामले बढ़कर 12 हजार के करीब पहुंचे, गुजरात में सबसे ज्यादा 2859 मरीज

भारत में बुधवार को ब्लैक फंगस (Black Fungus In India) के कुल मामलों की संख्या 11,717 हो गई. इसमें सबसे ज्यादा मामला गुजरात में पाए गए हैं.
नई दिल्ली.
देश में कोरोना वायरस संक्रमण की महामारी के बीच ब्लैक फंगस (Black fungus) के मामले बढ़ रहे हैं. भारत में बुधवार को ब्लैक फंगस के कुल मामलों की संख्या 11,717 हो गई. इसमें सबसे ज्यादा मामला गुजरात में पाए गए हैं. बताया हगयाकि राज्य में अब तक 2,859 मामले पाए गए हैं. वहीं अब तक सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को एम्फोटेरिसिन-बी की 29,250 शीशियां आवंटित की गई हैं. यह आवंटन उपचाराधीन रोगियों की संख्या के आधार पर किया गया है.
इससे पहले सरकार ने मंगलवार को को ‘एम्फोटेरिसिन बी’ की 19,420 शीशियां विभिन्न राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को दी थी. इस बाबत केन्द्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा ने ट्वीट कर जानकार दी थी. उन्होंने कहा था कि, ‘एम्फोटेरिसिन बी’ की 19,420 अतिरिक्त शीशियां विभिन्न राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेशों तथा केन्द्रीय संस्थानों को दी गई हैं’.
इन 19,420 शीशियों में से गुजरात को 4,640, महाराष्ट्र को 4,060, आंध्र प्रदेश को 1,840, मध्य प्रदेश को 1,470, राजस्थान को 1,430, उत्तर प्रदेश को 1,260, कर्नाटक को 1,030 शीशियां दी गई थीं.
‘एम्फोटेरिसिन बी’ का इस्तेमाल ‘म्यूकरमाइकोसिस’ के उपचार के लिए किया जाता है. इसे ‘ब्लैक फंगस’ भी कहा जाता है. यह एक दुर्लभ गंभीर संक्रमण है, जो कोविड-19 के कई मरीजों में पाया जा रहा है. इससे नाक, आंख, साइनस और कई बार मस्तिष्क को भी नुकसान पहुंच सकता है.
फंगस के रंग से नहीं घबराएं, कारण और जोखिमों की ओर ध्यान दें: विशेषज्ञों की सलाह
कोविड-19 रोगियों और संक्रमण से उबर चुके लोगों में म्यूकरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों के बीच विशेषज्ञों ने मंगलवार को लोगों को सलाह दी कि फंगस के रंग से नहीं घबराएं, बल्कि संक्रमण के प्रकार, इसके कारण और इससे होने वाले खतरों पर ध्यान देना जरूरी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने सोमवार को कहा था कि 18 राज्यों में म्यूकरमाइकोसिस के 5,424 मामले आए हैं जो कोविड-19 के रोगियों या इससे स्वस्थ होने वाले लोगों में पाया जाने वाला खतरनाक संक्रमण है.
पिछले कुछ दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों से रोगियों में ब्लैक फंगस के अलावा व्हाइट फंगस और यलो फंगस के भी मामले सामने आये हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार ये दोनों भी म्यूकरमाइकोसिस हैं. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महामारी विज्ञान और संचारी रोग विभाग के प्रमुख डॉ समीरन पांडा ने कहा कि ‘ब्लैक, ग्रीन या यलो फंगस’ जैसे नामों का इस्तेमाल करने से लोगों के बीच डर पैदा हो रहा है.
उन्होंने कहा, ‘आम लोगों के लिए, मैं कहूंगा कि काले, पीले या सफेद रंग से दहशत में नहीं आएं. हमें पता लगाना चाहिए कि रोगी को किस तरह का फंगल संक्रमण हुआ है. जानलेवा या खतरनाक रोग पैदा करने वाला अधिकतर फंगल संक्रमण तब होता है जब रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है.’ पांडा ने कहा, ‘इसलिए मूल सिद्धांत यही है कि फंगल संक्रमण से लड़ने की क्षमता या प्रतिरक्षा प्रणाली कैसी है.’