सर्द रात के बीच मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेता का कत्ल और हिल गया पूरा देश

ब्रह्मदत्त ने तीन साल के अंदर ही भाजपा को अपने आस-पास के इलाकों में मजबूत कर दिया था, जिसके बाद वे केंद्र के नेताओं के खास बन गए थे।
नई दिल्ली
साल 1997 में जब उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन था और प्रदेश का कोई भी राजनीतिक दल इस स्थिति में नहीं था जो अपना बहुमत सिद्ध कर सके। इन सबके बीच एक भाजपा नेता था जो बसपा की मायावती के साथ समीकरण दुरुस्त कर रहा था और गठबंधन की सरकार बनवाने के प्रयास में था। लेकिन 1997 की 10 फरवरी को इस कद्दावर नेता की राजनीति और सांसे दोनों रोक दी गई और नेता का नाम था ब्रह्मदत्त द्विवेदी।
जनता के बीच थी गहरी पैठ: ब्रह्मदत्त द्विवेदी उत्तर प्रदेश के ऐसे नेता थे जिन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था लेकिन शायद विधि के विधान को कुछ और ही मंजूर था। द्विवेदी अपने मिलनसार व्यक्तित्व के चलते सभी के प्रिय थे और जनता के बीच उनकी गहरी पैठ थी। पार्टी का हर नेता उनकी इज्जत करता था। 90 के दशक में तेजी से उभरे ब्रह्मदत्त, अपने क्रियाकलापों और राजनीतिक चपलताओं के चलते पार्टी के बड़े नेताओं के काफी करीब हो चले थे। अटल बिहारी बाजपेयी-आडवाणी से लेकर हर छोटा कार्यकर्ता द्विवेदी को जानता था।
किस प्रधानमंत्री के थे प्रिय: जनता का नेता, कवि और वकील की दुरुस्त छवि वाले ब्रह्मदत्त के कूटनीतिक कौशल को राम मंदिर आंदोलन के समय पहचाना गया। वहीं गेस्ट हाउस कांड के बाद से तो पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी भी उनकी ताकत को पहचान गए थे। लेकिन द्विवेदी का सफर उस वक्त रुक गया जब वे फरवरी की सर्द रात के बीच अपने शहर फर्रुखाबाद में एक कार्यक्रम से वापस लौट रहे थे।
क्या हुआ था 10 फरवरी की रात: साल 1997 और तारीख थी 10 फरवरी। कार्यक्रम में शामिल होने के बाद ब्रह्मदत्त द्विवेदी कार से चले जा रहे थे कि तभी बाइक सवार कुछ बदमाश हथियार से लैश होकर वहां पहुंचे और बिना वक्त बर्बाद किए गाड़ी पर फायरिंग करने लगे। कार के अंदर बैठा कोई शख्स कुछ समझ पाता कि पल भर में ही गाड़ी को गोलियों से छलनी कर दिया गया। सीएम पद के दावेदार माने जा रहे शख्स की हत्या की खबर पूरे देश में फैल गई।
पूर्व पीएम भी हुए अंतिम यात्रा में शामिल: द्विवेदी के मौत के बाद जनता सड़क पर थी और अटल-आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता ब्रह्मदत्त की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। मामले में द्विवेदी के परिवार ने 4 लोगों पर नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई। इस रिपोर्ट में शहर के ही विधायक विजय सिंह के अलावा तीन और अज्ञात लोगों के नाम थे। छिपते-छिपाते विजय को दिल्ली से पकड़ लिया गया और फिर उसके साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
कई सालों तक चले इस मुकदमें में साल 2003 में फैसला आया और विजय समेत दो अन्य आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इसके बाद विजय को जमानत भी मिली, लेकिन 2017 में हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट की सजा बरकरार रखते हुए फिर से जेल भेज दिया। वहीं इस मामले में कई अन्य आरोपी सबूत न होने के चलते छूट भी गए।