गेट वेल सून पीएम क्या वाकई देश के प्रधानमंत्री को जरा सा इल्म है !
रविवार 25 अप्रैल को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात बदस्तूर प्रसारित किया।
रविवार 25 अप्रैल को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात बदस्तूर प्रसारित किया। इस कार्यक्रम के प्रसारण के कुछ देर बाद ही ट्विटर पर हैशटैग गेट वेल सून पीएम ट्रेंड करने लगा। गेट वेल सून का हिन्दी अनुवाद है आप जल्द स्वस्थ हों। हालांकि प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम में अपने बीमार होने का जिक्र नहीं किया, लेकिन जो कुछ उन्होंने कहा, उससे बहुत से लोगों को यही लगा कि ये सब एक स्वस्थ मानसिकता का इंसान नहीं कह सकता। पूरी दुनिया में इस वक्त कोरोना को लेकर चिंता है और साथ ही इस बात की भी फिक्र जतलाई जा रही है कि भारत में कोरोना की यह दूसरी लहर खौफनाक तरीके से जानलेवा साबित हो रही है।
मौजूदा भारत की तुलना जर्मन तानाशाह हिटलर के बनाए गैस चेंबर से की जाने लगी है, जहां हिटलर अपने विरोधियों को कैद कर जानलेवा गैस से उनका दम घोंटता था। और अभी भारत में बिना आक्सीजन के रोजाना हजारों मरीजों का दम घुट रहा है। श्मशानों, कब्रिस्तानों में लाशों का ढेर लगा है और अंतिम संस्कार के लिए लोगों को टोकन लेकर कतार में लगना पड़ रहा है। हर ओर से शोक संदेशों की बाढ़ है और समझ नहीं आ रहा कि कौन किसे दिलासा दे, किस तरह समझाए कि सब ठीक हो जाएगा। क्योंकि उम्मीद बंधाने का कोई आधार सरकार नहीं दे रही है। लेकिन फिर याद आता है कि मोदी है तो मुमकिन है।
तो मोदीजी ने इस मुश्किल वक्त में लोगों को संबोधित करते हुए फिर एक नया प्रवचन दे दिया। अपने मन की बात में उन्होंने कहा कि कोरोना, हम सभी के धैर्य, हम सभी के दु:ख बर्दाश्त करने की सीमा की परीक्षा ले रहा है। बहुत से अपने, हमें, असमय छोड़ कर चले गए हैं। पहली वेव से सामना करने के बाद से लोगों में हौसला था लेकिन इस तू$फान ने देश को झकझोर दिया है। ‘कोरोना की दूसरी लहर पहली के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है। इसके बावजूद देश इस लहर पर भी काबू पा लेगा।
कोई सामान्य इंसान इस तरह की बात करता, तो उस पर लोगों को आश्चर्य नहीं होता। क्योंकि आम आदमी के हाथ में इस वक्त सिवाय एक-दूसरे को दिलासा देने के, कुछ और है भी नहीं। इसलिए सब यही उम्मीद मन में पाले हुए हैं कि ये दूसरी लहर किसी तरह गुजर जाए और जिंदगी फिर सामान्य पटरी पर आ जाए। लेकिन देश के प्रधानमंत्री से तो लोग इस सामान्य से दिलासे से अधिक की उम्मीद कर रहे थे। काश कि मोदीजी इन उम्मीदों को समझ पाते और देश को बताते कि रोजाना के साढ़े तीन लाख मामलों के अब छह लाख तक पहुंचने की जो आशंका जतलाई जा रही है, उसे सरकार कैसे गलत साबित करेगी।
काश वे देश को बताते कि पिछले कुछ दिनों में चुनावी रैलियों और चंद औपचारिक बैठकों के अलावा उन्होंने ऐसा क्या किया कि देश में आक्सीजन, वेंटिलेटरों और दवाओं की कमी दूर हो जाएगी। काश वे खुल कर बताते कि पीएम केयर्स फंड में कितनी धनराशि एकत्र हुई औऱ उसका कितना उपयोग कोरोना का सामना करने में किया गया। वे बताते कि कई राज्यों में लॉकडाउन के कारण जो प्रवासी मजदूर फिर बेरोजगार हो रहे हैं, फिर से उद्योगों पर तालाबंदी की नौबत आ रही है, कारोबार ठप्प हो रहा है, विद्यार्थी अपने भविष्य को लेकर सशंकित है, उन सबकी चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार क्या करने वाली है।
लेकिन मोदीजी ने ऐसा कुछ नहीं कहा। बल्कि उन्होंने बाबानुमा प्रवचन दे दिया कि कोरोना हमारे दुख बर्दाश्त करने की सीमा की परीक्षा ले रहा है। क्या वाकई देश के प्रधानमंत्री को जरा सा इल्म है कि इस देश की जनता के दुख बर्दाश्त करने की सीमा क्या है। नोटबंदी में अपनी कमाई के धन के लिए लोग तरस गए, नौकरियां चली गईं, जीएसटी ने मुश्किलें खड़ी कर दीं, सांप्रदायिक तनाव की तलवार सिर पर लटकती रही, लॉकडाउन में एक साल धीरज रखा कि सरकार शायद सब कुछ ठीक कर देगी, ये सब आम जनता के लिए जानलेवा दुख ही थे, जिन्हें उसने बर्दाश्त किया। और अब जबकि स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से लाखों लोग मर रहे हैं, तब भी उनके परिजन इस दुख को सह ही रहे हैं।
अब इससे ज्यादा और कितनी परीक्षा मोदीजी लेना चाहते हैं। शायद इसलिए लोग उनके स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं, ताकि उन्हें भारत के लोगों की हकीकत नजर आए।
वैसे मन की बात में उन्होंने इतना तो स्वीकार किया कि कोरोना की ये लहर खतरनाक है। अन्यथा अब तक वे इस पर कुछ बोलने से बच ही रहे थे। इसी तरह पिछली बार देश को संबोधित करते हुए उन्होंने लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में मान कर ये साबित कर दिया था कि उनका पिछला फैसला गलत था। मोदीजी अपनी गलतियों को जल्द समझें और उसे सुधार लें तो देश का भला होगा।