कोरोना काल में भी आपदा में उत्सव !

प्रधानमंत्री मोदी किसी भी काम को इस तरह से करने में यकीन रखते हैं कि उस काम की चर्चा भरपूर हो, भले उसका असर जैसा भी हो
प्रधानमंत्री मोदी किसी भी काम को इस तरह से करने में यकीन रखते हैं कि उस काम की चर्चा भरपूर हो, भले उसका असर जैसा भी हो। रह जीएसटी लगाने के लिए मोदीजी ने संसद को सजा कर वहां से आधी रात को आर्थिक आजादी का ऐलान किया था। बोर्ड परीक्षाओं पर बच्चों का हौसला बढ़ाना है, तो परीक्षा पर चर्चा का आयोजन होने लगा। और अब कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन लगवाना जरूरी है, लेकिन मोदीजी ने इसमें भी 11 अप्रैल से 14 अप्रैल तक टीका उत्सव मनाने का ऐलान किया है। वैसे देश में इस वक्त बहुत से घरों में शोक का माहौल है। रोजाना एक लाख से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। अस्पतालों में मरीजों को भर्ती होने के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ रहा है और उसके बाद भी इलाज मिलने की कोई गारंटी नहीं है। अस्पतालों में वेंटिलेटर, दवाओं, आक्सीजन सिलेंडरों की भारी कमी है।
शवदाहगृहों में अंतिम संस्कार के लिए लंबी लाइन लग रही है। ऐसे दुख के माहौल में देश के प्रधानमंत्री टीका उत्सव मनाने की बात इस तरह कह रहे हैं, मानो कोई अनूठा अवसर देश को मिला है, जिसे गंवाना नहीं चाहिए। वैसे आपदा में गिद्ध अपने लिए अवसर की तलाश में रहते हैं और जब लाशों का ढेर लगता है तो ये मौका उनके लिए उत्सव का सबब बन जाता है। कुदरत ने उन्हें ऐसा ही बनाया है। लेकिन इंसान तो गिद्ध नहीं हैं। फिर कैसे आपदा में उत्सव की बात की जा सकती है।
देश में एक ओर कोरोना के बढ़ते आंकड़े लोगों को डरा रहे हैं, तो दूसरी ओर सरकार का उत्सवी और लापरवाह रवैया हैरान कर रहा है। इस कठिन वक्त में भी भाजपा सरकार अपने विरोधियों को निशाना बनाने से बाज नहीं आ रही। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने देश में कोरोना वायरस के रोज बढ़ते मामलों के लिए शादी, स्थानीय चुनावों और किसान आंदोलन को सबसे बड़ी वजह बताया। देश के स्वास्थ्य मंत्री को अगर शादियां और किसान आंदोलन कोरोना के लिए जिम्मेदार लगते हैं, तो फिर कुंभ मेला और पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बारे में उनकी क्या राय है, ये भी देश को बताना चाहिए। केन्द्र सरकार पर ये आरोप भी लग रहे हैं कि गैरभाजपाई सरकारों के साथ उसका रवैया भेदभावपूर्ण है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र को वैक्सीन की 7.5 लाख खुराक मिली है। वहीं उत्तर प्रदेश को 48 लाख, मध्यप्रदेश को 40 लाख, गुजरात को 30 लाख और हरियाणा को 24 लाख खुराक मिली है। इन आंकड़ों से साफ है कि राज्यों को उनकी जनसंख्या के अनुपात से वैक्सीन नहीं मिली, बल्कि शासन भाजपा का है, तो अधिक खुराक और किसी अन्य दल का है, तो कम खुराक। महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, तेलंगाना, झारखंड जैसे राज्यों ने वैक्सीन की कमी को लेकर केन्द्र सरकार के सामने चिंता जताई है। लेकिन सरकार की नजर में देश में वैक्सीन की कोई कमी नहीं है।
प.बंगाल में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि वैक्सीन की कोई कमी नहीं है। हालांकि भारत में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट के अदार पूनावाला के मुताबिक सीरम इंस्टीट्यूट वर्तमान में कोविशील्ड की रोजाना 2 लाख डोज और हर महीने 60 से 65 लाख डोज पैदा कर रहा है। अदार पूनावाला ने कहा हमें हर महीने 100 से 110 मिलियन डोज का उत्पादन करना होगा लेकिन इसके लिए निवेश की जरूरत होगी। उत्पादन में तेजी लाने के लिए तीन हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी, जिसके लिए उन्होंने सरकार को खत लिखा है।
भारत में वैक्सीन की कमी को लेकर चिंताएं सामने आने लगी हैं और इसके साथ ही विदेशों को वैक्सीन निर्यात करने पर भी सवाल उठ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2 अप्रैल 2021 तक भारत में 7 करोड़ 30 लाख 54 हजार 295 लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी थी। और विदेश मंत्रालय की 2 अप्रैल की ब्रीफिंग के मुताबिक 6 करोड़ 44 लाख वैक्सीन की खुराक दूसरे देशों को भेजी जा चुकी थी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र की ‘कोवैक्स पहल’ के अंतर्गत, गरीब देशों के लिए 1.82 करोड़ वैक्सीन दी, जो मानवता के लिहाज से सही है। 1 करोड़ 4 लाख खुराक अनुदान के तौर पर विभिन्न देशों को दी गई, इस पर भी कोई ऐतराज नहीं, लेकिन 3 करोड़ 57 लाख वैक्सीन की डोज कारोबारी आधार पर निर्यात किए गये हैं तो सवाल उठने लाजिमी हैं कि क्या भारतीयों के हित से अधिक कारोबारी हित हैं।
भारत सरकार ने जुलाई 2021 तक लोगों तक वैक्सीन की 50 करोड़ ख़ुराकें देने का लक्ष्य रखा है। लेकिन जिस तरह से वैक्सीन की कमी हो रही है, क्या उसमें ये लक्ष्य पूरा करना मुमकिन होगा, ये बड़ा सवाल है। सवाल ये भी है कि दूसरे देशों की बनाई स्पुतनिक, फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के आयात पर विचार क्यों नहीं होता। रूस, अमेरिका, ब्रिटेन में इन वैक्सीन के अच्छे परिणाम देखे गए हैं। भारत सरकार ये कदम उठा सकती है कि अपने देश की बनाई वैक्सीन मुफ्त में या कम कीमत में गरीबों को उपलब्ध कराए, लेकिन जनता को ये छूट दे दे कि वह चाहे जिस कंपनी की वैक्सीन लगवाए। इससे सरकार पर बोझ कम पड़ेगा और टीकाकरण का लक्ष्य पूरा होगा। असली उत्सव तो तभी मनेगा।