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भोपाल गैस त्रासदी:’हानिकारक कचरे के निस्तारण में देरी पीड़ितों के अधिकारों का हनन’=रिटायर्ड जस्टिस अरुण कुमार

नई दिल्ली

-‘हानिकारक कचरे के निस्तारण में देरी पीड़ितों के अधिकारों का हनन’, NHRC चीफ का बड़ा बयान

 

-रिटायर्ड जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा ने कहा कि औद्योगिक आपदाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय उद्यमों की जिम्मेदारियां अच्छी तरह से तय करनी होगी।

 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा ने शनिवार को बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के स्थल पर कई टन हानिकारक कचरा पड़ा है। इसके निस्तारण में देरी से भूजल तथा मिट्टी दूषित हो रही है। यह पीड़ितों और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार का प्रत्यक्ष तौर पर हनन है।

एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि औद्योगिक आपदाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय उद्यमों की जिम्मेदारियां अच्छी तरह से तय करनी होगी। उन्होंने 1984 में भोपाल में एक वैश्विक कंपनी के संयंत्र में हुई गैस त्रासदी का हवाला दिया, जिसे दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है। इस त्रासदी के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड को वैश्विक आलोचना का सामना करना पड़ा था।

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि तकरीबन 3,000 लोगों की मौत हुई। परिसर में करीब 336 टन हानिकारक कचरा अब भी पड़ा हुआ है। यह संपत्ति एक मालिक से दूसरे मालिक के पास चली गई। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की ओर से ऐसे हानिकारक कचरे के निस्तारण में देरी से भूजल और मृदा दूषित हुई। यह पीड़ितों तथा इलाके में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार का प्रत्यक्ष तौर पर हनन है।

उनकी यह टिप्पणी मध्य प्रदेश की राजधानी में हुई भीषण घटना के 38 साल पूरे होने के कुछ दिनों बाद आई है। दो-तीन दिसंबर 1984 की सर्द रात में भोपाल में यूनियन कार्बाइड की कीटनाशक फैक्टरी से निकली जहरीली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली। इस साल तीन दिसंबर को भोपाल में कई लोगों ने इस घटना और इसके पीड़ित लोगों की याद में निष्क्रिय यूनियन कार्बाइड फैक्टरी तक मार्च किया था।

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