महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती बलात्कार की घटनाएं चिंताजनक : अनिल देशमुख(पूर्व गृह मंत्री)

महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के वरिष्ठ नेता अनिल देशमुख ने राज्य सरकार पर महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचार को लेकर निशाना साधा

मुंबई

महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के वरिष्ठ नेता अनिल देशमुख ने राज्य सरकार पर महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचार को लेकर निशाना साधा। देशमुख ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि महा विकास आघाड़ी सरकार के दौरान महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार और बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए ‘शक्ति’ कायदा-कानून तैयार किया गया था। इस कानून को पांच साल पहले विधानसभा और विधान परिषद में मंजूरी मिली थी, लेकिन केंद्र सरकार ने इसे अंतिम स्वीकृति नहीं दी।

 

उन्होंने बताया कि एक साल पहले केंद्र ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में बदलाव के बाद नए भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत शक्ति कायदा लागू करने के लिए एक कमेटी गठित करने का सुझाव दिया था। हालांकि, एक साल बीत जाने के बावजूद राज्य सरकार ने इस कमेटी का गठन नहीं किया। महिलाओं के खिलाफ अत्याचार रोकने में सरकार की उदासीनता क्यों बरकरार है। ‘शक्ति’ कायदा लागू होने पर बलात्कार जैसे अपराधों में दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान होगा, जिससे अपराधियों में डर पैदा होगा और ऐसी घटनाएं कम हो सकती हैं।

 

एनसीपी (एसपी) नेता ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी भाषा की अनिवार्यता के खिलाफ भी आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि हाल ही में राज्य सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का एक जीआर (शासकीय आदेश) जारी किया था, जिसका पूरे महाराष्ट्र में विरोध हुआ। उद्धव ठाकरे की शिवसेना, राज ठाकरे की मनसे, शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस सहित सभी प्रमुख दलों ने इसका विरोध किया। सरकार ने 5 जुलाई को प्रस्तावित एक विशाल रैली के डर से यह जीआर रद्द कर दिया। हिंदी के प्रति किसी को आपत्ति नहीं है, लेकिन प्राथमिक स्तर पर मराठी भाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

देशमुख ने विधान भवन के प्रवेश पत्र से अशोक चक्र के प्रतीक को हटाए जाने पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “मैं 25-30 साल से विधानसभा का सदस्य हूं। प्रवेश पत्र पर हमेशा अशोक चक्र का चिह्नित रहता था, लेकिन इस बार इसे हटा दिया गया। यह समझ से परे है कि सरकार ने ऐसा क्यों किया। कुछ लोग संविधान को बदलने की मंशा का आरोप लगाते हैं, और ऐसी घटनाएं इस आशंका को बल देती हैं। सरकार को अशोक चक्र को प्रवेश पत्र पर पुनः शामिल करना चाहिए। कई साल से अशोक स्तंभ विजिटिंग पास के ऊपर लगा रहता था, उसको कायम रखना चाहिए।”

 

 

 

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