दिल्ली

‘लोगों को एक-दूसके की राय के लिए..’ सहिष्णुता को लेकर जस्टिस कौल ने दिया बड़ा बयान

भारत की सर्वोच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ अपने कार्यकाल को पूरा करने जा रहे हैं. चंद्रचूड़ एक न्यायालय के न्यायाधीश होने के साथ ही एक कर्मठ इंसान भी हैं, जो काम को टालने या रोकने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं रहते हैं. इसी से संबंधित उन्होंने कई बातें की, उनमें से कई बातों पर हमें अमल जरूर करना चाहिये.

नई दिल्ली,

भारत की सर्वोच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ अपने कार्यकाल को सफलता पूर्वक पूरा करने जा रहे हैं. चंद्रचूड़ एक न्यायालय के न्यायाधीश होने के साथ ही एक कर्मठ इंसान भी हैं, जो काम को टालने या रोकने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं रहते हैं. इसी से संबंधित उन्होंने कहा- “शुक्रवार को वकीलों से आग्रही अंदाज में कहा कि, जब तक जरूरी न हो वे मामलों के स्थगन की मांग न करें. सीजेआई ने कहा, कि वह नहीं चाहते, कि सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख -पे-तारीख’ अदालत बन जाए.” चीफ जस्टिस ने शुक्रवार को ऐसे मामलों की जानकारी साझा की जिनके स्थन की मांग की जा रही है.

अपने जीवन काल के आखिरी कार्य दिवस पर चंद्रचूड़ ने कहा, कि एक न्यायाधीश की निर्भीकता एक बहुत महत्वपूर्ण कारक है, और इंसान का यह कर्तव्य है कि वह न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करे. चंद्रचूड़ न्यायाधीश के रूप में छह साल और 10 महीने से भी अधिक का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं, और इसी दिसंबर की 25 तारीख को अपने पद से सेवानिव्रत हो रहे हैं.

उच्चतम न्यायालय में 18 दिसंबर से एक जनवरी 2024 तक शीतकालीन अवकाश रहेगा. ऐसी स्थिति में न्यायमूर्ति कौल का आज अंतिम विदाई समारोह कार्यदिवस मनाया जा रहा है. इस स्पेशल दिन का नेतृत्व कर रहे प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के साथ अपने एक खास रिश्ते और रिश्ते के खास जुड़ाव का भी जिक्र किया.

इस खास मौके पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भी 70 के दशक के मध्य के दिनों को याद करते हुए कहा, हम दोनों एक साथ एक ही कॉलेज के छात्र थे, और मुझे लगता है कि यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है. कि हमने एक-दूसरे के साथ यहां भी पीठ साझा की, चाहे वह पुट्टास्वामी (निजता का अधिकार) मामला हो, या समलैंगिकों के विवाह का मामला, अथवा हाल ही में अनुच्छेद 370 से संबंधित मुकदमा. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, कि न्यायमूर्ति कौल के साथ उनकी दोस्ती उनके लिये अत्यधिक ताकत का स्रोत रही है.

न्यायमूर्ति कौल ने आगे अपनी बात कहते हुये कहा, “उच्चतम न्यायालय ने बिना किसी डर या पक्षपात के, न्याय किया है और उन्हें लगता है, कि न्याय का यह मंदिर हमेशा खुला रहना चाहिए”. आगे न्यायमूर्ति ने कहा, “मेरा मानना है कि एक न्यायाधीश की निर्भीकता एक बहुत महत्वपूर्ण कारक है. अगर अपने पास मौजूद संवैधानिक संरक्षण के साथ, हम इसे प्रदर्शित करने में सक्षम नहीं हैं, तो हम प्रशासन के अन्य तंत्रों से ऐसा करने (निर्भीकता से काम करने) की उम्मीद नहीं कर सकते”.

न्यायमूर्ति ने कहा कि, वह एक संतुष्ट व्यक्ति के रूप में सेवानिवृत्त हो रहे हैं. उन्होंने कहा, मैं पूर्ण संतुष्टि की भावना के साथ जा रहा हूं. मैं जो कुछ भी कर सकता था, मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश की है. कभी-कभी यह सबसे अच्छा हो सकता है, कभी-कभी यह नहीं भी हो सकता है. लेकिन पूरा समाज एक ऐसी प्रणाली में काम करता है, जहां लोगों में एक-दूसरे की राय के प्रति सहनशीलता होनी चाहिए. आगे उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि यह सबसे बड़ा संदेश है, जो मैं देना चाहूंगा. हम उस समय दुनिया में हैं, जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहिष्णुता का स्तर बहुत कम हो गया है.”

26 दिसंबर, 1958 को जन्मे न्यायमूर्ति कौल ने 1982 में दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की, और 15 जुलाई, 1982 को बार दिल्ली विधिज्ञ परिषद में एक वकील के रूप में नामांकित हुए. दिसंबर 1999 में उन्हें वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था. न्यायमूर्ति कौल को तीन मई, 2001 को दिल्ली उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया था, और दो मई, 2003 को उन्हें स्थायी नियुक्ति प्रदान की गई. 1 जून, 2013 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया, और बाद में, 26 जुलाई, 2014 को उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का प्रभार संभाला. न्यायमूर्ति कौल को 17 फरवरी, 2017 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.

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