वाकई जल्दी निपटें आपराधिक पृष्ठभूमि सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामले

सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को तेजी से निपटाने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश भर के हाई कोर्टों को आदेश दिया है कि वे जिला न्यायालयों में ऐसे लम्बित मामलों की नियमित निगरानी करें
सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को तेजी से निपटाने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश भर के हाई कोर्टों को आदेश दिया है कि वे जिला न्यायालयों में ऐसे लम्बित मामलों की नियमित निगरानी करें। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में कोई निश्चित समयावधि सम्बन्धी निर्देश नहीं दिए जा सकते लेकिन उच्च न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर ऐसे मामले दर्ज करें और उनकी मॉनिटरिंग करें। विशेष रूप से उन मामलों को प्राथमिकता दी जाये जिनमें उम्र कैद या फांसी की सजा का प्रावधान हो। पीठ में न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और मनोज मिश्रा अन्य सदस्य हैं। बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट ऐसे मामलों पर तेजी से सुनवाई के लिए विशेष बेंच भी बना सकते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमों के निपटारे के लिए सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को स्वत: संज्ञान लेना होगा। अपने अधिकार क्षेत्र में लंबित मुकदमों की प्रभावी निगरानी और निपटान हेतु कार्यवाही को तेज़ करें। इन प्रकरणों की सुनवाइयों को हाईकोर्टों को वेबसाइटों पर डालने का भी आदेश बेंच द्वारा दिया गया जिससे जनता को पता चलता रहे कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ किस प्रकार के मामले लम्बित हैं और उन पर कोर्ट की सुनवाई में क्या हो रहा है।
मुख्य न्यायाधीश के साथ न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ के निर्देशानुसार ये विशेष पीठें ज़रूरत पड़ने पर मामलों को नियमित अंतराल पर सूचीबद्ध कर सकती हैं। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ऐसे मामलों के जल्दी और प्रभावी निपटान के लिए आवश्यक आदेश भी जारी कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि विशेष पीठ का नेतृत्व उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश कर सकते हैं। इसमें आगे यह भी कहा गया है कि मौत की सजा या आजीवन कारावास वाले मामलों के बाद पांच साल से अधिक की जेल की सजा वाले मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय उन मामलों की भी सूची तैयार करेंगे जिन प्रकरणों पर रोक लगा दी गई है और ऐसे मुकदमों में तेजी लाने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर यह आदेश दिया गया जिसमें मांग की गई थी कि देश भर की अदालतें वर्तमान और पूर्व सांसदों-विधायकों के विरूद्ध लम्बित प्रकरणों को शीघ्र निपटाएं। इसकी सुनवाई के दौरान बताया गया कि पूरे देश में वर्तमान व पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ 5175 प्रकरण लम्बित हैं। 2116 (करीब 40 फीसदी) मामले तो 5 साल से अधिक समय से लम्बित हैं। सर्वाधिक 1377 मामले उत्तर प्रदेश में हैं। दूसरे क्रमांक पर बिहार है। यहां 546 प्रकरण हैं। महाराष्ट्र में ऐसे 482 मामले लम्बित हैं।
उल्लेखनीय है कि 2014 में भी एक मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ प्रकरणों का निपटारा आरोप तय होने के एक वर्ष के भीतर निपटा दिया जाना चाहिए। यहां यह भी स्मरणीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब देश का नेतृत्व सम्भाला था, तब उन्होंने भी ऐसा ही कुछ मंतव्य जाहिर किया था जिससे लोकतंत्र और न्यायपूर्ण समाज में आस्था रखने वाले लोगों को यह उम्मीद बंध चली थी कि अब अपने रसूख का इस्तेमाल कर कानूनों की धज्जियां उड़ाने वाले लोग बेधड़क संसद के सदनों और विधानसभा-विधान मंडलों में नहीं पहुंच पाएंगे। चूंकि मोदी उस भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व करते हैं जो सार्वजनिक जीवन में शुचिता की बात करती थी, उसी के बड़ी संख्या में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग जनप्रतिनिधि बनकर इन सदनों में न केवल प्रवेश पा रहे हैं बल्कि बड़े ओहदों पर भी काबिज हो रहे हैं तथा पार्टी में भरपूर सम्मान पा रहे हैं। बहुत से लम्बित मामले ऐसे हैं जिनमें भाजपा के ही जनप्रतिनिधियों की संलिप्तता है। वैसे यह भी सच है कि सिर्फ भाजपा के लोगों के खिलाफ गम्भीर प्रवृत्ति के अपराध जर्ज नहीं हैं बल्कि लगभग सारे ही राजनैतिक दलों का यही हाल है।
कुछ अरसा पहले एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने बताया था कि आपराधिक रेकार्ड के लोग हर दल से शर्तिया जीतते हैं। इस कारण वे सभी दलों की पहली पसंद होते हैं। इसीलिये बड़ी संख्या में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग विधायिकाओं में पहुंचते हैं और अपने पद, प्रभाव तथा पैसों के बल पर अपने खिलाफ जारी जांच व मुकदमों को या तो रुकवा देते हैं या उनकी गति को धीमा करवा देते हैं। इन प्रकरणों के बावजूद वे चुनाव लड़ते हैं, जीतते हैं और कार्यकाल पूरा कर लेते हैं।
तमाम निराशाजनक तस्वीर के बावजूद सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला और हाई कोर्टों को दिया निर्देश आशा की किरण के रूप में देखा जा सकता है बशर्ते कि उच्च न्यायालय बगैर दबाव व प्रभाव में आये तथा भारी-भरकम फीस लेकर मामले लड़ने वाले उनके हाई प्रोफाईल वकीलों के दांव-पेंचों से निकलकर वाकई कथित बड़े लोगों के प्रकरणों को शीघ्रताशीघ्र निपटाये और देशवासियों को एक साफ-सुथरी लोकतांत्रिक व्यवस्था देंगे। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों को इसका भी रास्ता निकालना होगा कि वह कैसे सत्ताधारी दलों द्वारा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अपने सांसदों, विधायकों, मत्रियों आदि के खिलाफ थानों में दर्ज व न्यायालयों में लम्बित मामलों को ही समाप्त कर देते हैं। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने ही 2022 में सभी राज्यों को सांसदों-विधायकों के खिलाफ लम्बित प्रकरणों की सुनवाई के लिये विशेष कोर्ट बनाने के लिये कहा था पर केवल 12 राज्यों ने ही उसका पालन किया है।