‘आपदा में अवसर’ मोदीजी का एक अश्लील मुहावरा या जनता को भरमाने की कोशिश ?
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि आपदा को अवसर में बदलना है
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि आपदा को अवसर में बदलना है और अब सिर्फ एक रास्ता है ‘आत्मनिर्भर भारत’। इसके बाद इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स को संबोधित करते हुए भी उन्होंने दोहराया कि ”कोरोना वायरस महामारी के बीच हर देशवासी इस संकल्प से भरा हुआ है कि इस आपदा को अवसर में बदलना है। मोदी जी के मुखारबिंद से निकले इस मुहावरे को ब्रह्मवाक्य मान लिया गया और हर छोटी-बड़ी उपलब्धि को – चाहे वह सरकार की हो या व्यक्ति विशेष की, आपदा को अवसर में बदलने के उदाहरण की तरह पेश किया जाने लगा। देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी 2021 का आम बजट पेश करते हुए उसे भी आपदा में अवसर बताया।
पता नहीं, मोदीजी को भी ये अंदाज रहा होगा या नहीं कि लोग ‘आपदा में अवसर’ के क्या और कैसे अर्थ निकाल लेंगे। हालांकि खुद उनकी सरकार ने कोरोना काल का भरपूर फायदा उठाया और संसद सत्र बुलाए बिना एक के बाद एक दर्जन भर अध्यादेश जारी कर दिए। बहुत सारे पुराने कानूनों को एक झटके में बदल दिया गया। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो संसद की भूमिका को अर्थहीन बना दिया गया और पूरी व्यवस्था सरकार के हाथों में सिमट गई। राज्य सरकारों को भी मनमानी करने का मौका मिल गया और उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कानून बदल दिए या उन्हें स्थगित कर दिया। जाहिर है, इन तमाम कार्रवाइयों में विपक्ष से सलाह-मशविरा करने की कोई जरूरत नहीं समझी गई।
हिंदुत्व के ध्वजाधारियों के लिए भी तो कोरोना काल आपदा में अवसर बनकर आया। उन्होंने जगह -जगह और अलग-अलग तरीकों से अल्पसंख्यकों के साथ हिसाब चुकता किया। मुसलमानों के बारे में अफवाहें फैलाई गईं, झूठे वीडियो वायरल किए गए, जिनका खंडन पुलिस ने एक से ज़्यादा बार किया, कुछ वेबसाइटों ने भी मुसलमानों के खिलाफ किए जा रहे दुष्प्रचार की वास्तविकता बताई। इसके बावजूद उनके आर्थिक बहिष्कार की अपीलें की गईं, उन्हें कारोबार करने से रोका गया, मारा-पीटा गया और फर्जी मुकदमे उन पर लाद दिए गए। इस तरह आपदा का इस्तेमाल लोगों को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काने के लिए किया गया और इसमें नेताओं, खबरिया चैनलों और ख़ास तौर पर सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका अदा की।
आपदा में अवसर की गंगा में नेताओं ने भी खूब डुबकियां लगाईं। उन्हें अपनी छवि चमकाने का सुनहरा मौका मिल गया। अस्पतालों में मरीजों को जब एक-एक सांस भारी पड़ रही थी, तब नेताओं ने ऑक्सीजन टैंकर को रोककर उसके साथ वीडियो बनवाए। इंजेक्शन के लिए मरीजों के परिजन दर-दर की ठोकरें खा रहे थे, तब नेतागण इंजेक्शन के बक्सों के साथ फोटो खिंचवाते नजर आए। भले ही ऑक्सीजन और इंजेक्शन के इंतजाम में उनकी राई बराबर भी भूमिका न रही हो। एक राज्य में कोरोना मरीजों को दी जाने वाली आइसोलेशन किट्स में पूर्व मुख्यमंत्री की तस्वीर पर नए मुख्यमंत्री की तस्वीर चिपकाई गई, मानो उनका फोटो देखकर ही कोरोना भाग जाएगा या मरीज जल्दी ठीक हो जाएगा।
जब सरकारों और नेताओं का रवैया ऐसा था तो आम और ख़ास लोग पीछे कैसे रहते। मौजूदा वक़्त में कोरोना की दूसरी लहर का लोग जमकर फायदा उठा रहे हैं। कहीं ऑक्सीजन के नाम पर फर्जी बैंक खातों में पैसे जमा करवाए जा रहे हैं तो कहीं खाली सिलिंडर थमाए जा रहे हैं। लगभग 4 हजार रुपए की कीमत वाला रेमेडेसिविर इंजेक्शन 15 से 20 गुना ज़्यादा कीमत में बेचा जा रहा है, तो कहीं इंजेक्शन के नाम पर ग्लूकोज़ की बोतलें पकड़ा दी जा रही हैं। यही हाल दूसरी दवाओं का भी है। अस्पतालों में बिस्तर और इलाज के लिए अनाप-शनाप कीमत वसूली जा रही है। एम्बुलेंस के आधा किलोमीटर के सफर के लिए भी हजारों रुपए चुकाना पड़ रहा है और कफन -दफन के लिए भी मुंह मांगे दाम लिए जा रहे हैं।
आपदा में अवसर को भुनाने की सारी हदें तब पार हो गईं, जब कोरोना पीड़ित महिलाओं के साथ दुष्कर्म की कोशिश की गई। उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात, और केरल में भी ऐसे मामले सामने आए, जिनमें कहीं चलती एम्बुलेंस में, तो कहीं कोविड सेंटर में तब्दील किसी हॉटल में महिला रोगियों के साथ दुष्कर्म किया गया, फिर चाहे वह 19 साल की कोई लड़की रही हो या फिर 60 साल की बुजुर्ग। इसमें वार्डबॉय तो क्या, डॉक्टर भी पीछे नहीं रहे। कुल मिलाकर इंसानियत शायद ही कभी इतनी शर्मसार हुई हो, जैसी इस कोरोना काल में हो रही है। कहना न होगा कि ‘आपदा में अवसर’ हमारे समय का सबसे अश्लील मुहावरा साबित हुआ है। जनता को भरमाने की ऐसी कोशिश फिर न हो।