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आत्मनिर्भरता की मोदीजी के द्वारा नई परिभाषा !

मंगलवार 19 अप्रैल को शाम को खबर आई कि प्रधानमंत्री फिर देशवासियों से कुछ कहने वाले हैं

 

मंगलवार 19 अप्रैल को शाम को खबर आई कि प्रधानमंत्री फिर देशवासियों से कुछ कहने वाले हैं। कोरोना की भयावह दूसरी लहर के बीच एक अर्से से इंतजार था कि मोदीजी कोई बड़ा कदम उठाएंगे। अस्पतालों में बिस्तरों, वेंटिलेटर्स, आक्सीजन, दवाइयों और अन्य संसाधनों की कमी दूर करने के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है, इस बारे में कुछ बताएंगे। प्रधानमंत्री बताएंगे कि देश में टीकाकरण अभियान तेज करने के लिए अब कौन सी रणनीति सरकार ने बनाई है। किस राज्य को, कितनी वैक्सीन की जरूरत है और कितनी उसे उपलब्ध हुई, इसका कोई ब्यौरा प्रस्तुत करेंगे। बहुत से राज्य लॉकडाउन लगा रहे हैं और प्रवासी मजदूरों की भीड़ एक बार फिर रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों पर दिखाई दे रही है, तो वे उनकी मदद के लिए कोई ऐलान करेंगे।

नये राहत पैकेज की घोषणा करेंगे या कम से कम ये बताएंगे कि पिछले साल जो 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज दिया था, उसका क्या परिणाम रहा, या ये बताएंगे कि क्या पीएम केयर्स फंड से इस बार गरीबों को कोई सीधी आर्थिक मदद मिलने वाली है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों कुछ उच्च स्तरीय बैठकें कीं, लेकिन सर्वदलीय बैठक या विपक्षी दलों के बड़े नेताओं के साथ कोई संवाद नहीं किया, और इसकी कोई संभावना भी उन्होंने मंगलवार के उद्बोधन में प्रकट नहीं की। कोरोना के बीच कुंभ और विधानसभा चुनाव जैसे आयोजनों के औचित्य पर भी मोदीजी ने कुछ नहीं कहा। यानी जिन बातों की देश के प्रधानमंत्री से अपेक्षा थी, उन सब मुद्दों पर चिर-परिचित तरीके से निराश करते हुए मोदीजी ने एक बार फिर केवल अपने मन की बात की।

कोरोना की दूसरी लहर के प्रबल होने में सरकार की किसी तरह की भूमिका से उन्होंने सीधे पल्ला झाड़ लिया और साथ ही कोरोना के खात्मे में सरकार की जिम्मेदारियों को भी बड़ी चतुराई से दूसरों पर डाल दिया। उन्होंने कहा कि कठिन स्थितियां हैं, कड़ी चुनौती है, लेकिन इन सब पर पार पाया जाएगा। सबको मिल कर कोरोना से लड़ना है और उस पर काबू पाना है। प्रधानमंत्री ने कहा, कि कोरोना के खिलाफ देश आज फिर एक बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रहा है। कुछ समय पहले तक स्थितियां संभली हुई थीं, फिर ये कोरोना की दूसरी लहर आ गई। जो पीड़ा आपने सही है, जो आप सह रहे हैं, उसका मुझे पूरा अहसास है। दवाओं की कमी पर उन्होंने कहा कि प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए हर तरीके से दवा कंपनियों की मदद ली जा रही है। अस्पतालों में बेड की संख्या को बढ़ाने का भी काम चल रहा है।

आक्सीजन की आपूर्ति पर मोदीजी ने कहा कि एक लाख ऑक्सीजन सिलिंडर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की जाएगी। ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए ‘ऑक्सीजन मेल’ शुरू किया गया है। नरेन्द्र मोदी ने राज्य सरकारों से अपील की है कि वे प्रवासियों से कहें कि वे अपना ठिकाना छोड़ कर अपने गृह राज्य न जाएं, उनमें भरोसा जगाएं। लॉकडाउन पर उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को कंटेनमेंट जोन पर ध्यान देना चाहिए, कोरोना दिशानिर्देशों का पालन करवाना चाहिए, पर लॉकडाउन न लगाना पड़े, यह भी ध्यान में रखना चाहिए। राज्य सरकारों को लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में ही देखना चाहिए। नरेन्द्र मोदी ने युवाओं से अपील की वे अपने-अपने मुहल्लों में कमेटी बनाएं जो कोरोना दिशा-निर्देशों का पालन करने में लोगों की मदद करें, उन्हें समझाएं, उनसे कोरोना दिशा-निर्देश का पालन करवाएं।

एक ऐसे देश में जहां कोरोना के मामले अब ढाई लाख से तीन लाख के बीच रोजाना की दर से आ रहे हैं, रोज होने वाली मौतों की संख्या दो हजार के पार चली गई है, स्वास्थ्य व्यवस्था दम तोड़ चुकी है, भ्रष्टाचार चरम पर है और आम आदमी की सांसें उखड़ रही हैं, वहां का प्रधानमंत्री इस कठिन वक्त में देश को ये प्रवचन दे रहा है कि सबको मिलकर कोरोना से लड़ना है। जख्मों पर नमक छिड़कना शायद इसी को कहते हैं। जब लोगों को इतना आत्मनिर्भर बनाना है कि वे अपने इलाज की व्यवस्था भी खुद ही करें तो फिर सत्ताधारी किस हक से कुर्सी पर बने हुए हैं। मोदीजी राज्य सरकारों से अपील कर रहे हैं कि वे प्रवासियों में भरोसा जगाएं और लॉकडाउन को अंतिम विकल्प बनाएं।

सवाल ये है कि उन्होंने पिछले साल लॉकडाउन को पहला विकल्प क्यों बनाया था और किसलिए लोगों को लगभग एक साल बेघर, बेरोजगार रखा, क्यों उनसे उनकी जीविका का आधार छीना, सम्मानपूर्वक जीवनयापन से वंचित किया। अगर लॉकडाउन अंतिम विकल्प होना चाहिए, तो क्या वे पिछले साल के अपने कारनामे के लिए माफी मांगेंगे। आक्सीजन और दवा की आपूर्ति का भरोसा दिलाने वाले मोदीजी क्यों पुलिस-प्रशासन से यह नहीं कह पाए कि जो इसकी कालाबाजारी कर रहे हैं, उन पर सख्त कार्रवाई की जाए।

जो अपील वे युवाओं से कर रहे हैं कि लोगों से कोरोना के दिशा-निर्देशों का पालन करवाएं, वो दरअसल फिर कुछ लोगों को जबरिया दादागिरी की अनुमति देने जैसा है। भाजपा राज में जो कार्यकर्ता मरी गायों को ले जाने वालों को पकड़ते रहे, किसी के भी घर में घुसकर गौमांस होने का आरोप लगाते रहे, प्रेमी जोड़ों पर नैतिक पहरेदारी करते रहे और राम मंदिर बनाने के लिए चंदा मांगते रहे, अब वही लोग मोदीजी के आह्वान पर कोरोना से बचाव के नाम पर लोगों को समझाने के नाम पर धमकाने, मारने का काम भी कर सकते हैं। बेहतर होता अगर मोदीजी जनजागरुकता से लेकर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने जैसी तमाम जिम्मेदारियां अपनी सरकार के लिए तय करते। मगर अभी तो उन्होंने आत्मनिर्भरता की नई परिभाषा देश को बताई है।

 

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