मोदीजी की अनंत कथाएं!
कैसा अद्भुुत संयोग है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के शुभ अवसर पर मन की बात का अमृत महोत्सव हुआ है
कैसा अद्भुुत संयोग है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के शुभ अवसर पर मन की बात का अमृत महोत्सव हुआ है।मोदी साहेब कहते हैं ऐसा लगता है मानो कल की बात हो। अब उन्हें क्या पता कि ये कल की नहीं, इस महादेश की महान प्रजा के लिए तो जन्म-जन्मांतर की बात है। ये तोमोदी साहेब का बड़प्पन है कि उन्होंने इसी जन्म की कथाएं सबके साथ साझा की हैं। अपने मन की बात लोगों को सुनाई हैं। वर्ना दिव्य पुरुषों के मन में कब, कौन से महान विचार जन्म लेते हैं, ये तुच्छ प्राणि क्या समझेंगे। वैसे भी अभी तो उनकी महागाथा के कुछ अंश ही लोगों तक पहुंचे हैं। हमने अब तक जो कथाएं सुनी हैं, उनमें ये पता चला कि साहेब के मन में जीव-जंतुओं के प्रति बचपन से ही दया का भाव था।
इसलिए जब वे जलक्रीड़ा करते हुए मगरमच्छ के बच्चे को घर ले आए और उनकी मां ने कहा कि ये गलत बात है, तो उसे वे वापस भी छोड़ आए थे। उनका यह दया भाव अनुकरणीय है। शोधार्थियों को इस बात पर जरूर शोध करना चाहिए कि क्या यह वही मगरमच्छ था, जिसके जबड़े में जाने से बाल अर्जुन ने अपने गुरु द्रोणाचार्य को बचाया था। कई सदियों बाद जब कुछ लोगों की मूर्खता के कारण एक पिल्ला वाहन के नीचे आते-आते बचा, तो साहेब को उस बात पर भी बड़ा दुख हुआ। इसका प्रायश्चित उन्होंने सद्भावना उपवास रखकर किया।
इस दयाभाव के अलावा साहेब में स्वाभिमान, आत्मनिर्भरता के गुण भी कूट-कूट कर भरे हैं। उनके इस जन्म की कथाओं में एक कथा ये भी है कि वे बचपन से अपने पैरों पर खड़े हो गए थे। यात्रियों को चायपान कराने में उनका बचपन गुजरा। उनकी दरिद्रता का एक मार्मिक किस्सा यह भी है कि बालपन में जब साबुन के पैसे नहीं होते थे, ऐसे में वह ओस की सुखी हुई पर्त का उपयोग नहाने और कपड़े धोने के लिए करते थे। इसमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने का संदेश भी था। मयूर को दाना चुगाते हुए भी इस प्राकृतिक सामंजस्य का संतोष उनके चेहरे पर प्रजा ने देखा है। अवतारी पुरुषों की कथाएं ऐसी ही शिक्षाप्रद होती हैं। स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता के इसी पथ पर अब समूचे भारतवर्ष को वे ले जाना चाहते हैं। लेकिन निजीकरण, पूंजीवाद जैसे आधुनिक शब्दों के इस्तेमाल से उनके प्रयासों को गलत बताया जा रहा है।
लेकिन वे हर असंभव को संभव करना जानते हैं। एक दिन भारत को तमाम सरकारी जंजीरों से आजाद करवा कर ही दम लेंगे, तभी आजादी का अमृत महोत्सव मनाएंगे। उनकी आत्मनिर्भरता का एक किस्सा यह भी है कि जीवन के कम से कम 35 वर्ष उन्होंने भिक्षाटन में गुजारे। वे उच्चशिक्षा प्राप्त हैं, चाहे तो कर्मचारी बनकर जीवनयापन करते। लेकिन उन्हें कर्मयोगी बनना था, लिहाजा भिक्षा का रास्ता चुना। आज वे यही शिक्षा देश के नौजवानों को देना चाहते हैं। लेकिन कृतघ्न युवा नए जमाने की तकनीकी शब्दावलियों से रोजगार दो जैसी मांगे करते हैं। साहेब के स्वाभिमानी मन को ये देखकर कितनी पीड़ा होती होगी। शायद इसलिए वे अब संन्यासियों जैसी वेषभूषा में आ गए हैं। वैसे भी दैवीय गुण तो हर हाल में विद्यमान होते हैं। चाहे नाम लिखा सूट पहनें या झोला उठाए फकीर बनें।
मोदी साहेब के जीवन का एक नया अध्याय हाल ही में प्रजा के सामने खुला है। खुद अपने श्रीमुख से उन्होंने इस कथा का वाचन किया है। देश में आंदोलन पर जीविका चलाने वाले लोग चाहें तो इससे ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। दरअसल अब तक जो भी आंदोलन होते रहे हैं, उनमें सब अपने अधिकारों की मांग करते हैं। इसलिए साहेब उन्हें आंदोलनजीवी कहते हैं। जबकि साहेब ने जो शुरुआती आंदोलन किए वे खुद के लिए न होकर पड़ोसी देश के लिए थे, वे इसके लिए कारागार की सैर भी कर आए। और जिस तरह संघर्ष का फल मीठा होता है, उसी तरह साहेब को अपने आंदोलन का फल अब खूब मिठास के साथ मिल रहा है। यानी साहेब आंदोलनजीवी नहीं, आंदोलनफली हैं। इस अध्याय के खुलने के बाद अब साहेब के अतीत पर कुछ और खोजें चल रही हैं। जैसे हड़प्पा में जब पुजारी की मूर्ति बन रही थी, तो क्या वह साहेब की सूरत से प्रेरित थी। जब एडमंड हिलेरी ने माउंट एवरेस्ट फतह किया, तो क्या उसमें साहेब की भी भूमिका थी। क्या कपिलदेव ने विश्वकप जीता, तो साहेब उनके साथ ही खड़े थे।
जैसे-जैसे वक्त बीतेगा,मोदी साहेब की कई और प्रेरक कथाएं प्रजा को पता चलती रहेंगी। अभी तो विष्णु पुराण में वर्णित हिरण्यकश्यप के वध की घटना की पड़ताल करनी चाहिए। क्या पता भक्त प्रहलाद को बचाने में साहेब की भूमिका का पता चले। आज के भक्तों के लिए इससे बड़ा आशीर्वाद क्या होगा।
वैसे हरि अनंत, हरि कथा अनंता।मोदी साहेब की कथाओं का भी कोई अंत नहीं है। समय आने पर इस साहेब पुराण का वाचन और किया जाएगा।