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किसान आंदोलन में मारे गए आंदोलनकारियों के लिए सरकार ज़िम्मेदार- जोगिंदर सिंह

नए कृषि क़ानून रद्द करने की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों के किसान बीते 110 दिनों से दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हुए हैं.

जो किसान अभी तक ट्रॉलियों में और तिरपाल के टेंट बनाकर रह रहे थे, अब उन्होंने पक्के मकान बनाना शुरू कर दिया है.

हालांकि सरकार और किसानों के बीच का गतिरोध अभी दूर होती नहीं दिख रहा है.

किसान आंदोलन की वर्तमान स्थिति और अगली रणनीति के बारे में बीबीसी के पत्रकार  ने किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां से की बात.

सवाल: किसान आंदोलन को 100 दिन पूरे हो गए हैं और आंदोलन की वर्तमान स्थिति क्या है ?

उत्तर: आंदोलन की शुरुआत से ही हम जानते थे कि आंदोलन लंबे समय तक चल सकता है. विकसित देशों ने ऐसी नीतियों को बनाने के लिए विकासशील देशों की मजबूरियों का फ़ायदा उठाया है. निजीकरण या अन्य नीतियों के तहत, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ऐसी संस्थाओं के अधीन है, क्योंकि ऐसे संस्थानों को उधार देना पड़ता है. इसलिए, ये नीतियां विकसित देशों के हक़ में और विकासशील देशों के ख़िलाफ़ हैं.

जब सरकार ने समानान्तर बाजार, अनुबंध कृषि जैसे कृषि क़ानूनों को लागू करने की घोषणा की, तो हमने उसी वक्त अनुमान लगा लिया था कि इनका विरोध लंबे समय तक चल सकता है. इस आंदोलन की शुरुआत से लेकर आज तक हमने कभी नहीं कहा कि यह एक छोटी लड़ाई है. ये कृषि क़ानून किसानों के ख़िलाफ़ हैं और इन क़ानूनों को रद्द करवा कर ही यह आंदोलन पूरा होगा.

सवाल: जिन मांगों पर आंदोलन शुरू किया गया था उन पर अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ. 100 दिनों के आंदोलन के बाद, पंजाब और हरियाणा ने इस आंदोलन से क्या हासिल किया?

उत्तर: हमने बहुत कुछ प्राप्त किया है और इसके बारे में शब्दों में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. किसान आंदोलन ने पूरे देश को खेती के मुद्दों पर संगठित कर दिया है और दुनिया भर में किसानों के बारे में बात की जा रही है. इस आंदोलन ने पंजाब और हरियाणा को पानी की लड़ाई से ऊपर उठा दिया और उन्हें आपसी एकता के बंधन में बांध दिया. इसने, युवाओं को एकजुट किया है और साथ ही साथ गीतों में संस्कृति को पुनर्जीवित किया है. अगर कोई कहता है कि हमने कुछ भी हासिल नहीं किया है, तो यह बिल्कुल ग़लत है. हम निराश नहीं हैं. सरकार इस मुद्दे पर बात नहीं कर रही है, यह उनकी राय है, लेकिन हम भी क़ानून को रद्द होने तक पीछे नहीं हटेंगें. हमारा यह मोर्चा स्थिर है और आगे भी रहेगा. हम सरकार की कमज़ोरी जानते हैं. सरकार कुर्सी के पीछे कुछ भी कर सकती है और कुर्सी लोगों के हाथ में है. फिर जब जनता ने कुर्सी ही खींच ली तो सरकार को मानना ही होगा.

अनौपचारिक रूप से, कुछ सरकारी अधिकारी हमसे बात कर रहे हैं, लेकिन औपचारिक रूप से सरकार कुछ नहीं कर रही है. सरकार अपने अहंकार में चुप है लेकिन हमारा आंदोलन पूरे जोश में है.

सवाल: सरकार संशोधन करने के लिए तैयार है, लेकिन आप और क्या हासिल करना चाहते हैं?

उत्तर: संशोधन के बारे में भूल जाएं. हम किसी भी परिस्थिति में संशोधन स्वीकार नहीं करेंगे. आज नहीं तो कल सरकार को झुकना ही पड़ेगा. सरकार ढाई साल तक इन कृषि क़ानूनों को होल्ड करने के लिए भी तैयार है. होल्ड कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. आंदोलनकारी हर स्थिति का सामना कर रहे हैं और हर किसी का हौंसला बुलंद है. हर राज्य में किसान आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा है.

किसान आंदोलन

इमेज स्रोत,SANJEEV KUMAR/HINDUSTAN TIMES VIA GETTY IMAGE

सवाल: अनौपचारिक वार्ता का विषय क्या है?

उत्तर: संशोधन पर कोई चर्चा नहीं है. मिडलमैन/ बिचौलिए संशोधन के बारे में बात भी नहीं कर सकते. वे दोनों पक्षों की स्थिति के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं और बीच का रास्ता खोजने की कोशिश करते हैं. उनका काम दोनों पक्षों को बातचीत के लिए आमने सामने लाना है .

सवाल: आप क्या उम्मीद करते हैं?

उत्तर: हमें पूरी उम्मीद है कि हम जीतेंगे. हमें कौन हराएगा?

सवाल: आंदोलन के दौरान 200 से अधिक लोग मारे गए हैं. इसके लिए आप किसे ज़िम्मेदार मानते हैं?

उत्तर: आंदोलन के दौरान शहीद हुए लोगों की शहादत पर हमें गर्व भी हैं और साथ ही हम दुखी भी. इन सभी मौतों के लिए सरकार ज़िम्मेदार है क्योंकि आत्महत्या करने वालों ने अपने सुसाइड नोट में अपनी मौत के लिए मोदी और शाह को जिम्मेदार ठहराया है. सरकार हमें इस देश का नागरिक ही नहीं मान रही है. कई युवा और बूढ़े लोग मारे गए हैं, लेकिन सरकार की ओर से इन के लिऐ कोई बयान नहीं जारी किया गया है और न ही सरकार ने इस पर कोई अफ़सोस प्रगट किया है. सरकार को कम से कम मानवाधिकारों का सम्मान तो करना ही चाहिए.

सवाल: यह आंदोलन कब तक चल सकता है या फिर यह ऐसे ही डेडलॉक (गतिरोध) में रहेगा ?

उत्तर: किसान संगठन अपनी क्षमता के अनुसार इस संघर्ष को जारी रखेंगे. किसान जथेबंदियाँ इस आंदोलन को जारी रखने के लिए अपनी पूरी ताक़त लगा देंगी. पर यदि किसान जथेबंदियों को लगा कि आंदोलन को मोड़ देने की की ज़रूरत है तो उस बात पर भी चिंतन हो रहा है. हमें सभी का पूरा समर्थन है. अगर आपको आंदोलन और अपने लोगों पर भरोसा है, तो आप कभी हार नहीं सकते.

सवाल: किसान नेता पश्चिम बंगाल की रैलियों में अपनी बात कह रहे हैं. आप इस सब को कैसे देखते हैं ?

उत्तर: यह संयुक्त मोर्चा का निर्णय है. संयुक्त मोर्चा और जन आंदोलन को दिल्ली की सत्ता का विरोध करने का पूरा अधिकार है. सरकार को यह महसूस नहीं करना चाहिए कि इस आंदोलन का कोई प्रभाव नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से भाजपा को नुकसान पहुंचाएगा. हम किसी को वोट देने या न देने के लिए नहीं कह रहे हैं. किसी भी राज्य में सरकार बनाना या न बनाना जनता के जन समर्थन का सबूत नहीं होता है.

सवाल: आप पश्चिम बंगाल क्यों नहीं जा रहे हैं?

उत्तर: यह संयुक्त मोर्चा पर निर्भर है कि वह किसको भेजेगें. लेकिन यहां तक मुझे भेजने की बात है, तो मैं शायद नहीं जाऊंगा, क्योंकि न तो मैं और न ही मेरा संगठन कह सकता है कि आप किस पार्टी को वोट दें या किसे नहीं. हम वोट की राजनीति से बचते हैं. इसलिए हम पश्चिम बंगाल में किसानों की रैलियों में नहीं जा रहे हैं.

सवाल: यदि पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम संयुक्त मोर्चे की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करते हैं, तो क्या यह किसान आंदोलन को प्रभावित करेगा?

उत्तर: राजनीतिक रूप से अधिक से अधिक वोट पाने के लिए सरकार पूरी कोशिश करेगी और आप यह भी जानते हैं कि पैसे के बल पर कोई भी अपने लिए वोट ख़रीद सकता है. ईवीएम का तरीक़ा भी है. इसलिए सरकार का वोटों को अपने हक़ में करना कोई बड़ी बात नहीं है. इसलिए, 25-30% मतों के साथ जीतने का मतलब यह नहीं है कि उस राज्य के अधिकांश लोग इसके पक्ष में हैं. इसके विपरीत, सरकार का विरोध करने वालों की संख्या अधिक है.

सवाल: MSP पर वर्तमान स्टैंड क्या है?

उत्तर: MSP पर एक क़ानूनी प्राधिकरण होना चाहिए और एक क़ानून बनना चाहिए. पूरे देश के लिए एमएसपी क़ानून बनाया जाना चाहिए. सरकार को सभी मुद्दों को संबोधित करना चाहिए और उस पर क़ानून बनाना चाहिए.

सवाल: क्या किसान संगठनों और सरकार के बीच बातचीत की संभावना है या गतिरोध बना रहेगा?

उत्तर: अभी तक वार्ता फिर से शुरू होने की संभावना नहीं है. सरकार नौकरशाही के माध्यम से अनौपचारिक रूप से बातचीत कर रही है लेकिन इस मुद्दे का समाधान करने के लिए तैयार नहीं है. जब सरकार थक जाएगी और बातचीत के लिए तैयार होगी, तो सबकुछ ठीक हो जाएगा.

सवाल: जब सरकार ने ढाई साल तक होल्ड की पेशकश की थी तो दोनों पक्षों के बीच कोई सहमति क्यों नहीं थी?

उत्तर: होल्ड भी आंदोलन की एक बड़ी उपलब्धि है लेकिन इसे स्वीकार करना संगठनों का आंतरिक मामला है. संगठनों को यह तय करना है कि इस समय आंदोलन के लिए सबसे उपयुक्त क्या है. इसे आगे बढ़ाने या आंदोलन को कुछ पीछे ले कर जाना. लेकिन हम इस से भी अधिक हासिल करने के लिए आए हैं, इसलिए होल्ड की स्थिति पर कोई सहमति नहीं है. हमने सिर्फ़ एक पड़ाव तय किया है, पूरी जीत नहीं.

सवाल: क्या यह आंदोलन 2024 तक जारी रहेगा?

उत्तर: यदि सरकार नहीं मान रही है, तो राजनीतिक रूप से यह उनकी अज्ञानता है . सरकार को इस आंदोलन के प्रभाव का पता चल जाएगा. इस मोर्चे ने पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ी है. यह दुनिया का सबसे बड़ा ऐतिहासिक आंदोलन होगा. सरकार सत्ता में है और वह अपनी शक्ति का उपयोग हमें ज़बरन उठाने के लिए कर सकती है, लेकिन भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भी भुगतने होंगे. यह आंदोलन 2024 तक जारी रह सकता है.

सवाल: सरकार क्या रुख अपना सकती है?

उत्तर- हम शुरू से ही सरकार के रवैये को जानते हैं. सरकार हमें कुछ ग़लत करने के लिए उकसाने की कोशिश कर रही थी लेकिन हम पहले से ही सरकार की चालाकी को जानते थे. 26 जनवरी की घटना के साथ, सरकार हमें नक्सली या खालिस्तानवादी साबित करके हमें बाहर करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन ऐसा कुछ ही नहीं हुआ. सरकार हिंदू-सिख कार्ड खेलना चाहती थी लेकिन असफल रही. सरकार की यह कार्रवाई निंदनीय थी.

सवाल: क्या 32 से अधिक संगठनों को एक ही मुद्दे पर सहमत करना मुश्किल है या क्या एक छोटी समिति भी हो सकती थी ?

उत्तर: एक छोटी समिति या बड़ी समिति का गठन किसान संगठनों का आंतरिक मामला है. यह विचाराधीन है. 7 संयोजकों की एक समिति वर्तमान में बैठकें कर रही है. सभी संगठनों में एकता, आम सहमति आदि बनाए रखने के प्रयास किए जा रहे हैं. बहुत कम संगठनों ने आंदोलन से खुद को दूर किया है. जब हम सभी एकजुट होकर वापिस जाएंगे तो यह हमारी महान उपलब्धि होगी.

सवाल: यदि सरकार ने बातचीत के लिए बुलाया तो क्या आप थोड़ा नर्म होंगे ?

उत्तर: हम बिल्कुल नरम नहीं होंगे. हम कभी गर्म हुए ही नहीं थे. हम सरकार के पास अपनी दलील लेकर आए हैं कि हमें यह मीठा ज़हर नहीं चाहिए, इसलिए कृपया इसे वापस ले लें. इसलिए हम क़ानून को रद्द किए बिना वापस नहीं जाएंगे.

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